कृष्ण जन्म
कृष्ण का जन्म हो,
या किसी और का जन्म हो,
जन्म की स्थिति में भेद नहीं है।
इसे थोड़ा समझना जरूरी है।
लेकिन सदा से हम भेद देखते आए हैं।
वह कुछ प्रतीकों को न समझने के कारण।
कृष्ण का जन्म होता है अंधेरी रात में,
अमावस में।
सभी का जन्म अंधेरी रात में होता है
और अमावस में होता है।
जन्म तो अंधेरे में ही होता है।
असल में जगत की
कोई भी चीज उजाले में नहीं जन्मती,
सब कुछ जन्म अंधेरे में ही होता है।
एक बीज भी फूटता है
तो जमीन के अंधेरे में जन्मता है।
फूल खिलते हैं प्रकाश में, जन्म अंधेरे में होता है।
असल में
जन्म की प्रक्रिया इतनी रहस्यपूर्ण है
कि अंधेरे में ही हो सकती है।
आपके भीतर भी जिन चीजों का जन्म होता है
वे सब गहरे अंधकार में जन्मती है।
बहुत "अनकांशस डार्कनेस' में पैदा होती है।
एक चित्र का जन्म होता है,
तो मन की बहुत अतल गहराइयों में
जहां कोई रोशनी नहीं पहुंचती जगत की,
वहां होता है।
समाधि का जन्म होता है, ध्यान का जन्म होता है,
तो सब गहन अंधकार में।
गहन अंधकार से अर्थ है, जहां बुद्धि का प्रकाश जरा भी नहीं पहुंचता।
जहां सोच-समझ में कुछ भी नहीं आता,
हाथ को हाथ नहीं सूझता है।
कृष्ण का जन्म जिस रात में हुआ,
कहानी कहती है कि हाथ को हाथ नहीं सूझता था,
इतना गहन अंधकार था।
लेकिन कब कोई चीज जन्मती है
जो अंधकार में न जन्मती हो!
इसमें विशेषता खोजने की जरूरत नहीं है।
यह जन्म की सामान्य प्रक्रिया है।
दूसरी बात कृष्ण के जन्म के साथ जुड़ी है
--बंधन में जन्म होता है; कारागृह में।
किस का जन्म है
जो बंधन और कारागृह में नहीं होता है?
हम सभी कारागृह में जन्मते हैं।
हो सकता है कि मरते वक्त तक
हम कारागृह से मुक्त हो जाएं, जरूरी नहीं है।
हो सकता है हम मरें भी कारागृह में।
जन्म एक बंधन में लाता है, सीमा में लाता है।
शरीर में आना ही बड़े बंधन में आ जाना है,
बड़े कारागृह में आ जाना है।
जब भी कोई आत्मा जन्म लेती है
तो कारागृह में जन्म लेती है।
लेकिन इस प्रतीक को
ठीक से नहीं समझा गया। इस बहुत काव्यात्मक बात को
ऐतिहासिक घटना समझकर बड़ी भूल हो गई।
सभी जन्म कारागृह में होते हैं;
सभी मृत्युएं कारागृह में नहीं होतीं।
कुछ मृत्युएं मुक्ति में होती हैं।
कुछ; अधिक कारागृह में होती हैं।
जन्म तो बंधन में होगा,
मरते क्षण तक अगर हम बंधन से छूट जाएं,
टूट जाएं सारे कारागृह,
तो जीवन की यात्रा सफल हो गई।
कृष्ण के जन्म के साथ एक और
तीसरी बात जुड़ी है और
वह यह है कि
जन्म के साथ ही उनके मरने का डर है।
उन्हें मारे जाने की धमकी है।
किस को नहीं है?
जन्म के साथ ही
मरने की घटना संभावी हो जाती है।
जन्म के बाद-
-एक पल बाद भी मृत्यु घटित हो सकती है।
जन्म के बाद प्रतिपल मृत्यु संभावी है।
किसी भी क्षण मौत घट सकती है।
मौत के लिए
एक ही शर्त जरूरी है, वह जन्म है।
और कोई शर्त जरूरी नहीं है।
जन्म के बाद एक पल जिआ हुआ बालक भी
मरने के लिए उतना ही योग्य हो जाता है
जितना सत्तर साल जिआ हुआ आदमी होता है।
मरने के लिए और कोई योग्यता नहीं चाहिए,
जन्म भर चाहिए।
कृष्ण के जन्म के साथ ही मौत की धमकी है,
मरने का भय है।
सबके जन्म के साथ वही है।
जन्म के बाद हम मरने के अतिरिक्त
और करते ही क्या हैं?
जन्म के बाद हम रोज-रोज मरते ही तो हैं।
जिसे हम जीवन कहते हैं,
वह मरने की लंबी यात्रा ही तो है।
जन्म से शुरू होती है, मौत पर पूरी हो जाती है।
लेकिन कृष्ण के जन्म के साथ
एक चौथी बात भी जुड़ी है कि
मरने की बहुत तरह की घटनाएं आती हैं,
लेकिन वे सबसे बचकर निकल जाते हैं।
जो भी उन्हें मारने आता है वही मर जाता है।
कहें कि मौत ही उनके लिए मर जाती है।
मौत सब उपाय करती है और बेकार हो जाती है।
उसका भी बड़ा मतलब है।
हमारे साथ ऐसा नहीं होता।
मौत पहले ही हमले में हमें ले जाएगी।
हम पहले हमले से ही
न बच पाएंगे।
क्योंकि सच तो यह है
कि करीब-करीब मरे हुए लोग हैं,
जरा-सा धक्का और मर जाएंगे।
जिंदगी का हमें कोई पता भी तो नहीं है।
उस जीवन का हमें कोई पता ही नहीं है
जिसके दरवाजे पर मौत सदा हार जाती है।
कृष्ण ऐसी जिंदगी हैं
जिस दरवाजे पर मौत बहुत रूपों में आती है
और हारकर लौट जाती है।
बहुत रूपों में।
वे सब रूपों की कथाएं हमें पता हैं
कि कितने रूपों में मौत घेरती है
और हार जाती है।
लेकिन कभी हमें खयाल नहीं आया
कि इन कथाओं को हम गहरे में
समझने की कोशिश करें।
सत्य सिर्फ उन कथाओं में एक है,
और वह यह है कि
कृष्ण जीवन की तरफ रोज जीतते चले जाते हैं
और मौत रोज हारती चली जाती है।
मौत की धमकी
एक दिन समाप्त हो जाती है।
जिन-जिन ने चाहा है,
जिस-जिस ढंग से चाहा है कृष्ण मर जाएं,
वे-वे ढंग असफल हो जाते हैं और
कृष्ण जिए ही चले जाते हैं।
इसका मतलब है।
इसका मतलब है, मौत पर जीवन की जीत।
लेकिन
ये बातें इतनी सीधी, जैसा मैं कह रहा हूं,
कही नहीं गई हैं।
इतने सीधे कहने का
पुराने आदमी के पास उपाय नहीं था।
इसे भी थोड़ा समझ लेना जरूरी है।
जितना पुरानी दुनिया में
हम वापस लौटेंगे,
उतना ही चिंतन का जो ढंग है वह
"पिक्टोरिअल' होता है, चित्रात्मक होता है,
शब्दात्मक नहीं होता।
अभी भी रात आप सपना देखते हैं,
कभी आपने खयाल किया कि
सपनों में शब्दों का उपयोग करते हैं
कि चित्रों का?
सपनों में शब्दों का उपयोग नहीं होता,
चित्रों का उपयोग होता है।
क्योंकि सपने हमारे आदिम भाषा हैं,
"प्रिमिटिवलैंग्वेज' हैं।
सपने के मामले में हममें
और आज से दस हजार साल पहले के आदमी में
कोई फर्क नहीं पड़ा है।
सपने अभी भी पुराने हैं, "प्रिमिटिव' हैं,
अभी भी सपना आधुनिक नहीं हो पाया।
अभी भी कोई आदमी
आधुनिक सपना नहीं देखता है।
अभी भी सपने तो वही हैं
जो दस हजार साल,
दस लाख साल पुराने थे।
गुहा-मानव ने गुफा
में सोकर रात में जो सपने देखे होंगे,
वही "एयरकंडीशंड' मकान में भी देखे जाते हैं।
बस, कोई और फर्क नहीं पड़ा है।
सपने की खूबी है कि
उसकी सारी अभिव्यक्ति चित्रों में है।
अगर एक आदमी बहुत महत्वाकांक्षी है
तो सपने में महत्वाकांक्षा को वह क्या करेगा?
चित्र बनाएगा।
हो सकता है उसके पंख लग जाएं और
वह आकाश में उड़ जाए।
सभी महत्वाकांक्षी लोग उड़ने का सपना देखेंगे,
"एम्बीशस माइंड' उड़ने का सपना देखेगा।
उड़ने का मतलब है सब के ऊपर हो जाना।
उड़ने का मतलब है कि
कोई सीमा न रही ऊपर उठने की।
जितना चाहो, उठ सकते हो।
पहाड़ नीचे छूट जाते हैं,
आदमी नीचे छूट जाते हैं,
चांदत्तारे नीचे छूट जाते हैं
और आदमी ऊपर उठता चला जाता है।
महत्वाकांक्षा शब्द का उपयोग
सपने में नहीं होगा।
उड़ने के चित्र का उपयोग होगा।
इसलिए तो हम
अपने सपने समझने में असमर्थ हो गए हैं।
क्योंकि दिन में हम जो भाषा बोलते हैं,
वह शब्दों की है, रात जो सपना देखते हैं,
वह चित्रों का है।
दिन में जो भाषा बोलते हैं वह बीसवीं सदी की है,
रात जो सपना देखते हैं, वह आदिम है।
इन दोनों के बीच लाखों साल का फासला है।
इसलिए सपना क्या कहता है,
यह हम नहीं समझ पाते।
जितना पुरानी दुनिया में
हम लौटेंगे--
और कृष्ण बहुत पुराने हैं,
इस अर्थों में पुराने हैं कि आदमी
जब चिंतन शुरू कर रहा है,
आदमी जब सोच रहा है
जगत और जीवन के बाबत,
अभी जब शब्द नहीं बने हैं और
जब प्रतीकों में, चित्रों में
सारा-का-सारा कहा जाता है और
समझा जाता है,
तब कृष्ण के जीवन की घटनाएं लिखी गई हैं।
उन घटनाओं को "डिकोड' करना पड़ता है।
उन घटनाओं को चित्रों से तोड़कर
शब्दों में लाना पड़ता है।
🙏💐
सभी मित्रों को शुभ जन्माष्टमी।
💐
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